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20 Aug 2021 · 1 min read

गर रुठे तू तुझे मना लूँगा

गर रुठे तू तुझे मना लूँगा
नैन के कोर में बसा लूँगा

है महक तेरे तन की सन्दल सी
लेप सी देह में रमा लूँगा

तू न नायाब हो कभी दिल को
रूप तस्वीर को सजा लूँगा

कनखियों से जब तके तू मुझे
इश्क तेरे तनिक तपा लूँगा

एक बदब़ख्त सा भटकता मैं
साथ पा दर्द को मिटा लूँगा

प्रेम ऐसी बला लगे मुझको
पाश तेरे सदा फँसा लूँगा

आज हम चल पडे डगर ऐसी
बस सहारा खुदा बना लूँगा

सन्दल – – चन्दन
नायाब — अप्राप्य
बदबख्त — अभागा

79 Likes · 1 Comment · 387 Views
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