गर रुठे तू तुझे मना लूँगा
गर रुठे तू तुझे मना लूँगा
नैन के कोर में बसा लूँगा
है महक तेरे तन की सन्दल सी
लेप सी देह में रमा लूँगा
तू न नायाब हो कभी दिल को
रूप तस्वीर को सजा लूँगा
कनखियों से जब तके तू मुझे
इश्क तेरे तनिक तपा लूँगा
एक बदब़ख्त सा भटकता मैं
साथ पा दर्द को मिटा लूँगा
प्रेम ऐसी बला लगे मुझको
पाश तेरे सदा फँसा लूँगा
आज हम चल पडे डगर ऐसी
बस सहारा खुदा बना लूँगा
सन्दल – – चन्दन
नायाब — अप्राप्य
बदबख्त — अभागा