गर दगा के न सिलसिले होते
गर दगा के न सिलसिले होते
तो सबक भी नहीं मिले होते
है पुलन्दा शिकायतों का क्यों
प्यार में तो नहीं गिले होते
बात आई गई हुई होती
होंठ हमने अगर सिले होते
शक्ल इस रिश्ते की अलग होती
जो न तुम बात से हिले होते
चाल चलते अगर ज़माने सी
तो फतह कुछ किये किले होते
भूल जाते जरूर तुमको हम
गर न यादों के काफिले होते
‘अर्चना’ की महकती दुनिया भी
गुल अगर प्यार के खिले होते
12-06-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद