‘गर आ जाते फिर एक बार….
‘गर आ जाते फिर एक बार …
सूनी रातें, बहकी बातें
नैनों से झरती बरसातें
शांत हो एक कोने में रहतीं
जग के मन में चलती घातें
जीत बन जाती मेरी हार
‘गर आ जाते फिर एक बार…
उर में है यादों की थाती
नैनों में आशा की बाती
पीर छलक दोनों नैनों से
मगन बाँचती अंतस पाती
खिल उठती देख तुम्हें साकार
‘गर आ जाते फिर एक बार…..
अश्कों से गम अपने धोए
भाग्य- सितारे मेरे सोए
इन नाजुक पलकों ने मेरी
तब से कितने सावन ढोए
चहक उठता सूना संसार
‘गर आ जाते फिर एक बार…..
देख तुम्हें आँखें जी जातीं
गटक-गटक आँसू पी जातीं
सुप्त हसरतें पड़ी हृदय में
स्पर्श मधुर पाकर मुस्कातीं
रहता न सुख का पारावार
‘गर आ जाते फिर एक बार…..
वो आना भी क्या आना था
धुंध- भरा ताना- बाना था
ख्वाब था जैसे चलता कोई
बस नज़रों का नज़राना था
उतर जाता मन का भी भार
‘गर आ जाते फिर एक बार…..
– © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
“मृगतृषा” से