गर आ जाते तुम।
जी लेते हम भी ज़िन्दगी को गर आ जाते तुम।
अश्कों से ना होती यूँ दोस्ती गर आ जाते तुम।।1।।
तेरी रूह में उतरते इश्क़ बनकर हम ऐ ज़िंदगी।
नज़रों से अश्क़ ना छलकते गर आ जाते तुम।।2।।
तन्हाई में नशे से हो गयी दोस्ती हम पीने लगे।
यूँ मैखाने मे ना गुजरती रात गर आ जाते तुम।।3।।
नाराज़ है अब मेरी माँ भी इस शराब के चलते।
फिर ना होता हमसे ये गुनाह गर आ जाते तुम।।4।।
ना रहे अपने घर के यूँ ना रहे तेरी मोहब्बत के।
फिर ना आते हम गुमराही में गर आ जाते तुम।।5।।
समझौता ना करते हम बिगड़े हुए इन पलों से।
क्यों आदत बनती यह शराब गर आ जाते तुम।।6।।
बिन तेरे क्या करते ज़िन्दगी का हम चुप ही रहे।
हाँ यूँ मौत ना लेती आगोश में गर आ जाते तुम।।7।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ