गर्मी
सूरज की शहजादी गर्मी,
सर्दी निकली घर से निकली
मन में जन कल्याण बसाये
जल संग्रह करने अषाढ तक
तीन माह की सघन साधना
रीते बादल भर देती है
मन में जन कल्याण बसाये
मेघों को आमंत्रित करती
अच्छे दिन लाने की चाहत
सह लेती लू लपट प्रमाद
मन में जन कल्याण बसाये
खारा जल भी पिये धरा का
भरती खेतों की विबाइयां
काले मेघों की मरहम से
मन में जन कल्याण बसाये
हरियाली धन धान्य सजाये
धूप और गर्मी शह्जादी
करती नौ महिने विश्राम
मन में जन कल्याण बसाये
हर वर्ष यह क्रम दोहराये
लक्ष्मी नारायण गुप्त