गर्मी
गर्मी
तन ये सारा फूंक दिया
मन मेरा झकझोर दिया
गिराकर ऐसे सीधी गर्मी
सबकुछ तुने झुलसा दिया ।
खिलने वाला प्रसून बाग में
अधखिला सा रहने लगा
मीठा बोलने वाला पंछी
कर्कश वाणी में चहकने लगा
कंठ सूखा है सभी का
जलाशयों को तुने जला दिया।
गिराकर ऐसे सीधी गर्मी
सबकुछ तुने झुलसा दिया ।
पेड़ों की शीतल छाया भी
रहने लगी है गर्म भी
पत्ते सूख कर गिरने लगे
उड़ते हैं बन कर चिट्ठी
इतनी गर्म हवाओं ने
जीना दुर्भर है कर दिया ।
गिराकर ऐसे सीधी गर्मी
सबकुछ तुने झुलसा दिया ।
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नवल पाल प्रभाकर