गर्मी
दिल में गर्मी कम ना थी, मौसम की गर्मी आ गई
एक पसीना कम कहाँ था? उफ़्फ़ ये गर्मी आ गई।
तन पे तो पंखा लगा लूँ, मन का क्या उपचार है?
थी आग पहले से ही अंदर, आग ही अब बाहर है।
मेरी गर्मी, जानता मैं, तुझको क्या इसकी ख़बर।
जो जले दोनों तरफ़ से, वो ही इस से बाख़बर।
गर्मी का मौसम तो आए, कुछ दिनों कुछ मास का
दिल की गर्मी का ये मौसम, साल दर और साल का।
प्याले भर-भर जो पिये हैं, हमने सब के ज़हर के
अब कहाँ अमृत निकालें, बाशिन्दे मेरे शहर के।
कब्र में और आग में, गर्मी बहुत ये ध्यान कर
आदतें गर्मी की डाले, ये “सुधीरा” जानकर।।