** गर्मी है पुरजोर **
मुक्तक-१
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खूब पसीना पड़ रहा, गर्मी है पुरजोर।
पोंछ पोंछ कर थक गये, अपना तन हर ओर।
शीतलता की चाह में, व्याकुल मन है खूब।
लेकिन अब राहत भरा, बचा न कोई छोर।
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मुक्तक-२
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ग्रीष्म ऋतु का देखिए, अपना है नव राग।
भोर समय में शीघ्र ही, सभी गये हैं जाग।
पक्षी कलरव कर रहे, उड़ते नभ की ओर।
फूलों की सुन्दर छटा, महक उठे हैं बाग।
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मुक्तक- ३
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मेघ श्यामल बहुत ही गरजता रहा।
खूब पानी गगन से बरसता रहा।
हो गये तृप्त सब छोर अब देखिए।
बस करो वक्त कर जोड़ कहता रहा।
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मुक्तक- ४
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छा रही देखिए खूब काली घटा।
खूबसूरत नहीं प्रकृति की छटा।
कर रहे शोर देखो सघन मेघ जब।
क्या कहें अब समय किस तरह है कटा।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य