गर्मी संताप
सूरज देवता कितनी आग बरसाओगे
गर्मी से पीडित लोगों को कितना तरसाओगे
भीषण गर्मी में ओर कितना तडपाओगे
क्या बादलो को आसमां की सैर नहीं कराओगे
नदी नाले तालाब सब सूख रहे
खेत खलिहान अपना रूख मोड़ रहे
हर घड़ी राहत की मंशा कर रहे
कुछ ओर नहीं बस पानी की आकांक्षा कर रहे
अब तो धरती भी कर रही विलाप है
भला यह कैसा अभिशाप है
सुरज देवता कुछ कम करो कहर
बादल की होने दो कुछ महर