गर्मी पर एक गजल –आर के रस्तोगी
कुछ तो पढ़ी लिखी होगी ये गर्मी |
जो अड़तालीस डिग्री लेकर घूमती है ये गर्मी||
मचा है चारो तरफ ये शोर,गर्मी है गर्मी|
ऐसी व कूलर केवल चूसती है ये गर्मी ||
जवानो में रही न बूढों में रही वो गर्मी |
क्यों कहते है फिर दुखती है ये गर्मी ||
बना दिया बेशर्मो को शर्मदार इस गर्मी ने |
क्योकि नग्न बदनो को ढकती है ये गर्मी ||
सोचते है सभी कैसे मरेगी ये अब गर्मी |
बोतलो के ठंडे पानी से मरती है ये गर्मी ||
पूछ रहे है ये सवाल क्यों बढ़ी है गर्मी |
सूरज की किरणों से फूटती है ये गर्मी ||
इधर धोते है कपड़े,उधर सुखा देती है गर्मी |
पहनते ही कपड़े पसीने से धुलती है ये गर्मी ||
कर रहे पवनसुत से प्रार्थना निगलो सूर्य को |
चैन आ जाये प्रजा को जब बुझती है ये गर्मी ||
क्या करे रस्तोगी जो बढे न ये गर्मी |
पेड़ो को लगाने से टूटती है ये गर्मी ||
आर के रस्तोगी
मो 9971006425