गर्मी के चटपटे…
सूरज भइया के ये नखरे! अब सबके पसीने छुटा रहे हैं हर व्यक्ति की नजर सुबह न्यूज पेपर मिलते ही मौसम तापमान पर जा पहुँचती है मेरी भी नजरें वैसे ही जा पहुँची पारा सचमुच हाई था 46 डिग्री देखकर तुरन्त ही बुखार पकड़ लिया हो मानो! पर सम्भल गये क्योंकि महसूस हुआ कि ए. सी. के अन्दर हूँ अभी तो! निकलने के बाद छूटेंगे पसीने अभी तो चैन ले ही लूँ! इस तरह की गर्मी में ऊपर के मकान खूब आग उगलते है पानी की टंकियाँ बेचारी दिन-भर तपती हैं और मारे गुस्से के नल को भी उबलता हुआ पानी देती हैं जो कि टंकी और नल की मित्रता एकदम पक्की वाली है एक के बिना दूसरे का कोई मतलब नहीं! फिर भी?!ऐसे में सूरज भइया दिन भर फुल तेवर में रात में थोड़ा सा विश्राम कर लेते हैं काहे से दिन भर सबको देखते-देखते थक जाते हैं! इस तरह घूर-घूर के देखते हैं कि मजबूरन हर लड़की हो या आण्टी सबको मुँह बाँधना पड़ता है उम्र का भी इनको लिह़ाज नहीं होता कि कुछ देखकर घूरें,जब इतने से भी दाल नहीं गलती तो अंकल जी को परेशान करने लगते हैं बेचारे अंकल हारकर अपना गमछा सर से मुँह तक बाँध ही लेते हैं! और इनके दो बड़े वाले दुश्मन कूलर और ए. सी. हैं जो इनकी गन्दी नजरों से सबको बचा लेते हैं! फिर बेचारे घूर ही नहीं पाते क्योंकि कमरे के अन्दर बस नहीं चलता इनका तब मजाल है ये दोनों कमरे में हों और सूरज भइया की तपिश कमरे में घुस जाये पूरा 36 का आँकड़ा चलता है!लेकिन इन दोनों को भी आराम चाहिए ना!बेचारे 6 महीने चौबीसों घण्टे ड्यूटी करते हैं! इसी वजह से शाम होते ही लोग छतों पर नजर आने लगते हैं कुछ पल कूलर,ए.सी को आराम देने के लिए! दिन भर में उनका हाजमा बिगड़ जाता है तो ध्यान तो रखना ही पड़ेगा! गर्मी के मौसम में बच्चों की छुट्टियाँ हो जाती हैं सबकी पहले से ही प्लानिंग रहती है कहाँ जायेंगे घूमने!कोई कुल्ली, मनाली तो कोई मसूरी,नैनीताल तो कोई शिमला! ये पसन्द तो बच्चों के मम्मी-पापा की होती है.. पर बच्चों का असली शिमला और कुल्लू-मनाली तो दादी और नानी का घर होता है जहाँ पर उन्हें बहुत सारा प्यार मिलता है! धीरे-धीरे घर पर जमात लग जाती है पूरी दोपहर लूडो, चेस और कैरम में गुजर जाती है फिर शाम की चाय सबके साथ बेहद लाजवाब बात ही ना पूछो!ऐसे में यदि नानी के यहाँ जाना है तो अड़ोसी-पड़ोसी और घर के मामा-मामी यही कहते फिरते हैं कि इनके यहाँ का खाना खत्म हो गया है अब यहाँ का खत्म करने आये हैं! रिवाज है मामा और भांजे-भांजियों के मजाक का! जो बहुत ही आनन्ददायी होता है कुछ भी कहो सब जाय़ज होता है! जीने से मरने तक सब! लगभग सबके आने की तैयारियाँ शुरु हो गयी हैं क्योंकि 20 मई तक बच्चों के स्कूल बन्द हो जायेंगे! ऐसे में जब अपने शहर से दूर हो तो मन नहीं लगता कि घर पर सब इकट्ठे हैं और मैं कहीं और.. आज काफी दिनों बाद घर की तस्वीर देखने को मिली! मन खुशी से झूम उठा! एकपल को ऐसा लगा मानों हम घर पहुँच गये! मेरी चीजें वैसे ही व्यवस्थित दिखी जैसी मैंने छोड़ी थीं! मन को शुकून भी मिला और याद भी बेहिसाब आयी….
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शालिनी साहू
ऊँचाहार, रायबरेली(उ0प्र0)