गर्मी का क़हर केवल गरीबी पर
गर्मी का प्रकोप कुछ इस तरह से बढ़ रहा है,
अपने ही किया पर अब इंसान सिर धुन रहा है।
दिन प्रतिदिन बढ़ते ताप ने दिमाग का पारा बढ़ा दिया,
जिसे देखो वही गर्मी से झल्लाता दिखाई दिया।
बढ़ती गर्मी गरीब का जीवन दूभर कर रही है,
दिहाड़ी मजदूर व रोज की रोटी कमाना मौत लग रही है।
इस तपती गरमी में भीख माँगते लाचारों को देखो,
नंगे पैर गाड़ी शीशा साफ कर माँगते बच्चों का सोचो।
पेड़ की छाया ही उनका एसी है,
अधिकतर पीने का पानी भी गर्म कूलर है।
अमीरों को गर्मी से क्या फर्क पड़ता है,
हर कोना उनके घर का कूलर एसी से सजा है।
घर से बाहर भी जाओ तो गाड़ी एसी ही पाओ,
उनके लिए तो घर बाहर बस जिंदगी लुत्फ उठाओ।
गरीब तरसता है ठंडे पानी की एक बूँद को,
अमीर का बाथरूम भी एसी से लैस है।
पानी ठंडा गरम के सब साधन है जिनके पास,
उन्हे क्या पता गरीब की गर्मी सर्दी बीतती है कैसे रात!
अमीर गरीब की तुलना, नहीं है बचाव,
पर्यावरण संरक्षण के करने हैं उपाय।
बढ़ती गरमी में गरीब तो फिर भी चलो इंसान है
जीव जंतुओं का तो गरीबों से भी बुरा हाल है।
अपने पर्यावरण का हाल हमने खुद ही बिगाड़ा है,
अब जब गर्मी का कहर आया दोष प्रकृति पर डाला है।
वृक्ष लगाए कम , काटे ज्यादा हैं,
पहाड़ों को भी काट कर घर बनाए हैं।
हो सके तो कुछ प्रण हम सब भी कर लें,
जीव जंतुओं की प्यास बुझा कुछ सत्कर्म कर लें।
किसी गरीब भिखारी को पैसे /रुपये न देना,
एक बोतल ठंडा पानी या लस्सी का पैक ही दे देना।
वृक्ष लगाने का अभियान जीवन में ध्येय बना लो,
पर्यावरण संरक्षण के यज्ञ में कुछ आहुति सभी डालो।
अगर मौसम ठीक रहेगा तो गरीब भी सुख से जी पाएगा,
लावारिस जीव जंतुओं का भी जीवन संँवर जाएगा।
दिन प्रतिदिन बढ़ती गरमी से ले लो सबक,
पर्यावरण संरक्षण में जुट जाओ होकर दक्ष।
नीरजा शर्मा