*गर्दिशों के दौर में भी मुस्कुराना चाहिये*
वज़्न – 2122 2122 2122 212
अर्कान – फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
बह्र – बह्रे रमल मुसम्मन महज़ूफ़
क़ाफ़िया – बुझाना ( आना)
रदीफ़ – चाहिये
गर्दिशों के दौर में भी मुस्कुराना चाहिये
आस का दीपक नहीं हमको बुझाना चाहिये
ज़िंदगी के खेल में हो जंग रिश्तों से अगर
छोड़ कर अभिमान झूठा हार जाना चाहिये
कौन जाने कब तलक तुमको मिली सांसे यहाँ
भूल सब संजीदगी हँसना हँसाना चाहिये
हौंसला शाहीन सा तुम इस ज़माने में रखो
बादलों से तुमको’ ऊँचा उड़ दिखाना चाहिये
साथ हैं तेरे मुसाफ़िर ये ज़मीनो -आसमां
बेधड़क आगे ही’ आगे पग बढ़ाना चाहिये
धर्मेन्द्र अरोड़ा मुसाफ़िर
9034376051
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