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11 Sep 2020 · 1 min read

— गरूर टूट गया —

बहुत गरूर था
मौसम को भी
कि मेरा कुछ कभी
बिगड़ता नहीं

आया तूफ़ान
उडा ले गया
बना गया शमशान

मानव हताहत हो गए
परिंदे बेघर हो गए
बाकी बचा न कोई निशान

भोर की इंतजार में
चिड़िआं लगी चहकने
आया जलजला ऐसा
फिजां को कर गया ग़मगीन

ची ची की आवाज
भोर के साथ बन गयी हैवान
टूटने लगा था मौसम का
न टूटने वाला वो गरूर

सोच में पड़ गया
आसामन आसुओं से भर गया
तब रोने लगा वो नादान
नहीं रहता गरूर किसी का
हो चाहे वो कितना मगरूर

उप्पर वाले के हाथ है बन्दे
रखना या बिखेरना
फिर क्यूँ रखते हो गरूर

सबक दे जाती हैं
यह सारी आपदाएं
करो उस विधाता का ध्यान
घर हो या हो बाहर
कभी नहीं बिगड़ेगा
तेरा कुछ ओ बन्दे नादान

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
1 Comment · 417 Views
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