गुरूर का अंत
अनोखी सी इस हयात में
परमेश्वर ने सब मनुजों को
एक जैसा प्रत्यक्षत भी न
बनाया इस जग, संसार में
गुरुत्व सबका जुदा, पृथक
किंचित मानव इनसब पर
करते फिरते विपुल घमंड
किसी का बोझिल वृहत तो
किसी का रूप रंग हिमवर्ण
कभी न करे इनसबों पे दंभ ।
कतिपय मानुष भुवन में
धवल तो अपने आनन पे
करता फिरता है गुमान
क्या उन्हें यह पता नहीं
कि रंग रूप का अज्ञात
न संभ्रांत इस जहांन में
क्या पता कल को उन्हें
किसी दुष्परिणाम बस
उनका चेहरा खो जाए
क्या पता कोई पंगु का
उड़ता मजाक आज वों …
अतः कभी न करे गुरूर ।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार