गरीब की बारिश
जब होती है ये बारिश
गरीब की हयात होती
दुर्लभ, दुष्कर जहां में
विपुल आचरण से यह
करती गरीबों की बर्बादी ।
जब विपुल होती बरखा
दारिद्रय के निकेतनों में
लग जाता वृहत कीलालं
इनसे उनका निर्गत होना
होता बड़ा ही कष्टसाहय ।
आज भी कई बस्तियों में
कित अभाव की है झोपड़ी
प्रवर्षण होने पर आज भी
इनकें गेह से टपकता उदक
गरीबों का हयात- ए- कर्कश ।
जब जब होती है यह वृष्टि
इन्हीं के प्रयोजनता से ही
उनका बाह्य होना अटाल
न होता छतरी उनके पार्श्व
कैसे भी चलाते सतत कार्य ।
होती एक बोझ बरसात
इन दीन, दरिद्रों के लिए
गृह में सलिल सोने को भी
ठाँव न, न ये रुकने का यश
कैसे कैसे बिताते ये संप्रति ।
बरसात जब होती निर्धनों के
इस अनूठी सी- जिंदगानी में
उनका खाद्यय पकाना दुष्कर
इसी कारण से उनको भव में
भूखे भी सोना पड़ता कई दिन ।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार