गरीब की आंखें
गरीब की आँखें
मलिन सा चेहरा
गिरती उठती हौले-हौले
तन पर फटे हुए कपड़े
जरूर ये आँखें
किसी गरीब की हैं ।
गरीबी की अकड़ ने
तोड़ कर रख दिये काँधे
टेढ़े-मेढ़े बिखरे बाल
निस्तेज निष्ठूर गोरे गाल
गड्ढ़ों में धँसती हुई सी
जरूर ये आँखें
कि सी गरीब की हैं ।
लक्ष्य बिन्दू पर अटकी सी
ज्यों दे रही चुनौती
हर तुफां से लडऩे की
सहमी दुख झेलने वाली
जरूर ये आँखें
किसी गरीब की हैं ।