*गरीबों की ही शादी सिर्फ, सामूहिक कराते हैं (हिंदी गजल)*
गरीबों की ही शादी सिर्फ, सामूहिक कराते हैं (हिंदी गजल)
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1)
गरीबों की ही शादी सिर्फ, सामूहिक कराते हैं
गरीबों का कहो उपहास, किस कारण उड़ाते हैं
2)
बहुत अच्छी हैं सामूहिक, विवाहों की सभी रस्में
मगर अफसोस मंत्री कब, निजी शादी सजाते हैं
3)
करें नेताजी अपने पुत्र, का भी ब्याह सामूहिक
हमेशा क्यों परम-उपदेश, औरों को सुनाते हैं
4)
अधिक महॅंगे विवाहों से, चलन है देश का बिगड़ा
सभी के मन में शाही ठाठ, वाले स्वप्न आते हैं
5)
रुपय्या आम-जन ने जो, बड़ी मुश्किल से जोड़ा था
दिखावे के लिए शादी में, सब उसको लुटाते हैं
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615 451