गरीबी
गरीबी
गरीबी …
गरीबी भी कितनी अजीब है
शायद ये ही उनका नसीब है
गरीबी भी दो किस्म की देखा
किसी को मन का तो किसी को तन का गरीब देखा
धनी को मंदिर के अंदर और
गरीब को मंदिर के बाहर हाथ पसारते देखा
किसी को कम्बल बिना ठिठुरते देखा
किसी को को कम वस्त्र मेइतरते देखा
वित्रष्णा तब और भी गहरी हुई
……
जब गरीब को भूख से मरते और
लोगो को महफिल मे थाल सजाकर फेकते देखा
दर्द और भी गहरा हुआ जब ..
….
जब नौनिहालो को ए सी मे सोते
और बुजुर्गो को धूप मे पसीना बहाते देखा
दिशा विहीन समाज किस ओर जाएगा
जहॉ हर पल संस्कारो को मरते देखा