गरीबी
गरीबी भी अजीब ,
ढंग से पेश आती
एक तो चादर फटी
ऊपर से ठंड बढ़ी
परेशान हो गया जिंदगी से
कभी भर पेट
तो काभी भूखे पेट
भरा हो तो नींद आ जाती
खाली पेट तो नींद भी नहीं आती
कई दिनों से
एक साबुन के टुकड़े को
देख देख नहा रहा था
फिसल कर हाथ से ,
उसने भी आज दाम तोड़ दिया
तोड़ते दाम साबुन का देख
मैं आज खूब रोया
कर विचार मैं एक पल न सोया
बीमारी, लाचारी, भूख प्यास, दुख सुख और जीवन
वक्त आने पर हर चीज मिट जाती
और
एक ये गरीबी है
की मिटने का नाम नही लेती ||
नीरज मिश्रा ” नीर ” बरही मध्य प्रदेश