गरिमामय है धरती अपनी
गरिमामयी है धरती अपनी
इसे वसुंधरा भी कहते है
यह धरती है बलिदान की
फांसी चढ़े कितने ही गीत गाते हुए।
शाम को कह दो अब
कल फिर सूरज आयेगा
नहीं रहेगा राज अंधेरा
देखेंगे सूरज को नया सबेरा लाते हुए।
उधम से शुरु हुआ तो
गांधी तक शहीद हुए
गली गली में दिखते बच्चे
गीत – क्रांति के गाते हुए।
यह देश हमारा है भाई
रक्षा करेंगे इसकी राई -राई
मिट जायेंगे, मर जायेंगे
क्षत- विक्षत करने जो कोई आए।
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स्वरचित: घनश्याम पोद्दार
मुंगेर