गरिमामय प्रतिफल
अभिभूत भावनाओं के चरमोत्कर्ष पर जिसका
उदय होता है,
अंतस्थ से यह उभरता है, और व्यवहार में
दृष्टिगोचर होता है ,
पवित्र वाणी एवं विचारों से यह सुशोभित होता है ,
पात्रता आकलन के मंच पर गहन मंथन की प्रक्रिया से यह निर्धारित होता है ,
गरिमामय यह प्रतिफल, अन्तर्निहित संस्कार, पवित्र आचार ,विचार एवं व्यवहार से परिपूर्ण कुछ विरलों द्वारा अर्जित किया जाता है ,
वरना दैनिक जीवन में औपचारिकता को भी दृष्टिभ्रम से सम्मान मान लिया जाता है ।