*”गरल”*
“गरल”
राणा जी ने मीरा को भेजा गरल का प्याला ,
अमृत सुधा समझ पी गई ,लेकर हरि का नाम।
गरल का प्याला पीकर कृष्ण दीवानी हो गई,
एकतारा लिए हाथों में भजती गिरधर का नाम।
राणा जी ने मीरा को साँप का पिटारा भेज दिया,
माला समझ पहन लिया लेकर कृष्ण का नाम।
मीरा को जब राणा जी ने बिच्छू का पिटारा भेज दिया ,
उंगली में अंगूठी समझ मीरा ने पहन लिया लेके हरि का नाम।
राणा जी ने मीरा को महलों में बंद कर दिया ,
महलों में बंद हो सत्संग में रम गई लेकर प्रभु का नाम।
हरि चरणों मे ऐसी लगन लगी ,सुध बुध खो गई,
गरल बन गया पीकर अमृत के समान।
अंतर्मन में गिरधर विराजे ,मीरा बाँवरी हो गई,
स्वर्णिम किरणें ज्योति पुंज में हो गई अंतर्ध्यान।
मैं तो गिरधर के गुण गाऊँ ,कृष्ण दीवानी हो गई,
सत्संग में रम गई लेकर हरि का गुणगान।
जय श्री राधेय जय श्री कृष्णा
शशिकला व्यास✍