“गमलों की गुलामी में गड़े हुए हैं ll
“गमलों की गुलामी में गड़े हुए हैं ll
कुछ पौधे पिंजरे में जकड़े हुए हैं ll
आसमां छूने के ख्वाब मिट्टी में मिल गये,
पौधे ले देकर बस दो चार फुट बड़े हुए हैं ll
पंछियों के घोंसले तक नहीं हैं
पौधे इंसानों के बीच अकेले खड़े हुए हैं
ऊंचाई पर तो हैं पर ऊंचे नहीं हैं,
पौधे छत की मुंडेर पर चढ़े हुए हैं ll
यह वृक्षारोपण नहीं, वृक्षाशोषण है,
फूल मुरझाएं हुए हैं, फल सड़े हुए हैं ll”