गमगीन हूँ मैं सजन बगैर
जिया बेकरार सजन बगैर
गमगीन हूँ मैं सजन बगैर
जब से गए हैं वो कहीं दूर
हाल बेहाल हम उन बगैर
रूठा हैं वो किसी बात पर
बात कौन बताए उन बगैर
ताकते हैं नयन उनकी राह
सूनी सब राहें राहगीर बगैर
महकना चाहती है जिन्दगी
महक नहीं होती फूल बगैर
लुप्त हो गई मुस्कानें कहीं
गंभीर है जिंदगी हँसी बगैर
होठों से ले गया हँसी छीन
हँसी कौन बिखेरे उन बगैर
फिका है रंग उतरे चेहरे का
बदरंग हुई जिंदगी रंग बगैर
कब तक ढोए भार जिंदगी
अकेले लाचार हैं उन बगैर
रुकी रुकी घुटी सी हैं सांसे
बेजान मोहताज हैं उन बगैर
पतझड़ सी वीरान जिन्दगी
सावन सूखा है साजन बगैर
जिया बेकरार सजन बगैर
गमगीन हूँ मैं सजन बगैर
सुखविंद्र सिंह मनसीरत