गफलत
तोड दियें सारी तहमीदें
पर कुछ न, अपने हाथ लगा
खा चुकें थें सारी कसमे
पर रब का ना साथ मिला ।।
कसक कसम की अब भी बाकि
कुछ प्याले, और पिलाओ साकी
भूल चुका हूँ जिन बातों को
उसकी याद कराओ साथी ।।
कितनी रातें बातों में काटीं
कितनी बातें बातों से लागिं
खुल हीं चुका अब, लग हीं रहा था
अपनी किस्मत का ताला
धम से बंद, जीवन की धक धक
लाल चुनर में गोटा साजा ।।
विदा हुई जीवन से मेरे
जाने खता हुई क्या हमसे
थी यह गफलत , उसी ख़ुदा की
सजीं हुईं हैं जिसकी दूकानें
गली चौबारे ग्राम नगर में ।।