गधों का मता…..
यह राजनीति भी कैसी राजनीति है….
बिना सर पैर सरपट भागती है….
मुद्दे सब पीछे छूट जाते हैं…
जनता भौचक्की ताकती रह जाती है….
इलेक्शन आते ही नेताओं के ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं…
कुछ तो नए नए शब्द गढ़ देते हैं….
कुछ पुराने शब्दों की परिभाषाएं…
अलग अंदाज़ में देने लग जाते हैं……
आज कल ‘गधा’ शब्द नंबर १ ट्रेंड कर रहा है…
बचपन में जो पढ़ा था उसमें घट बढ़ रहा है…
और गधों का अपना इनफार्मेशन ब्यूरो है…
कहाँ क्या हो रहा सब खबर आ जा रहा है…
खबर मिली है गधों ने मता पास किया है….
नेताओं ने मिलकर उनको बदनाम किया है…
पूछा है हलफनामें में सब गधों ने मिलकर….
वो बताएं अब तक उन्होंने क्या काम किया है…
हम दिन रात काम करते हैं बिन सोचे समझे…
हम को यहाँ देखो ले जाते हैं हमसे बिना पूछे …
नेता कहाँ रहते हैं कभी दीखते ही नहीं…
किया कुछ नहीं नाम हमारा यूस करते थकते नहीं…
काश! कभी हम जैसे बन काम किया होता…
किसी का बुरा न सोचा होता न किया होता….
माना काम नहीं करना उनको कोई बात नहीं…
पर हमारे नाम की जगह दिमाग यूस किया होता…
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/सी. एम्. शर्मा