गद्दारों की बात न कर……!
गीत
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गद्दारों की बात न कर वो तो हर घर में रहते हैं
बिन पेंदी के हैं वो लोटे सदा लुढ़कते रहते हैं
आस्तीन का साँप बने हैं , आज घरों में घर वाले
देख सफलता अपनों की ही , करते उन संग घोटाले
कैसे हो बरवादी उनकी , यही सोचते रहते हैं
बिन पेंदी के हैं वो लोटे, सदा लुढ़कते रहते हैं
लूट गरीबों को वो अपनी, रोज तिज़ोरी भरते आ
जिसके कारण भूखे नंगे, लोग यहाँ पर मरते आ
बे परवाह हो मस्ती में वो, सदा झूमते रहते हैं
बिन पेंदी के हैं वो लोटे , सदा लुढ़कते रहते हैं
बेच रहे ईमान वो अपना, भृष्टाचार बढ़ा डाला
खौंप रहे अपनों के खंज़र, कैसा खेल रचा डाला
मात पिता को दे ताने , कटु वचन बोलते रहते हैं
बिन पेंदी के हैं वो लोटे, सदा लुढ़कते रहते हैं
इधर कभी तो उधर कभी और कभी दोगले हो जाते
जिस जिस घर से मिलता चारा, गुण उनके ही वो गाते
वोटों की जब आये बारी , हाथ जोड़ते रहते हैं
बिन पेंदी के हैं वो लोटे, सदा लुढ़कते रहते हैं
सुन लो साथी बचकर रहना , ऐसे मतलब खोरों से
अपनी पूँजी सदा बचाना, ऐसे अन्धे चोरों से
करना है बे पर्दा उनको , जो रूप बदलते रहते हैं
बिन पेंदी के हैं वो लोटे, सदा लुढ़कते रहते हैं
© डॉ. प्रतिभा ‘माही’