” गति ना जाये टारी ” !!
गीत
कुहासा पड़ गया भारी !!
झुलसी है हरीतिका भी ,
पड़ी जो ओस की बूंदें !
परेशानी किसानों की ,
उड़ी जो आज हैं नीदें !
बिखरते से लगे सपने ,
विपद से फिर हुई यारी !!
धवल सी बिछ गई चादर ,
हुए दिन रात हैं ठंडे !
सिहरती लग रही नदियाँ ,
फहरे शीत के झंडे !
पहाड़ों पर बढ़ी ठिठुरन ,
जमी हैं झील अब सारी !!
धुँआ सा हो गया मौसम ,
नज़र घटती लगे है !
लगे गुमसुम हुआ सूरज ,
धूप पल पल ठगे है !
नज़ारे हैं कहीं सजते ,
कहाँ टूटे खुमारी !!
सजे हैं गीत अधरों पर ,
मिलन की है लगन सी !
अटारी पर चढ़ी आशा ,
खुशी की है छुअन भी !
उड़ी है नींद रातों की ,
गति ना जाये टारी !!
बृज व्यास