गणेश वंदना (धत्तानंद छंद )
गणेश वंदना
धत्तानंद छंद
11/7/13 हर पंक्ति में 31
अंतिम तीन लघु होते हैं।
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शिव सुत दीन दयाल,काटो काल,
भारी विपदा में विनय।
आरत करत पुकार,सब विधि हार,
दया सिन्धु करदो अभय ।
जग की झूठी आस,धन के दास,
नाते रिश्ते जो सकल ।
धन पिंजर खग छोड़,मुखड़ा मोड़,
उड़ा गगन अति मन विकल।
सबतन गयो थकाय,मन पछताय ,
अंग अंग गड़बड़ सिमट ।
इच्छा चाहत भोग,व्यापे रोग ,
आवत नहिं कोऊ निकट ।
देखत नयन पसार,अब लाचार,
हरहु कामना गज वदन।
लेत लेत तव नाम,पहुॅंचूॅं धाम,
यह जग तज शुभगुण सदन ।
गुरू सक्सेना
13/6/24