गणेश अराधना
1 गणेश आराधना
हे शिवनंदन गौरी माँ के तुम हो लाल,
शुभ कार्य आरंभ करने आयी तेरे द्वार।
माथे पे सोहता चंद्रमा हो चार भुजाधारी,
पीताम्बर परिधान पहने मूसे की सवारी।
मोदक का भोग लगाएं कार्तिकेय के भ्रात,
मंगलमूर्ति विघ्न विनाशक हरे सकल संताप।
एक दंत लंबोदर कहलाए मुकुट सजा के शीश,
शरणागत तो जो भी तेरे आए मिले सदा आशीष।
वक्रतुंड महाकाय सुख करता दुख हरता
भक्त की बाधा हर के भव से पार लगाता।
भादो के माह में मनाएँ चतुर्थी ख़ास,
निर्धन को धन देते बांझन को संतान।
दूर करो ईर्ष्या द्वेष दंभ पधारो परिवार संग,
रिद्धि सिद्धि साथ लाना ढोल मृदंग के संग।
डॉ दवीना अमर ठकराल’देविका’