गणपति गजराज
जय-जय हे गणपति गजराज, प्रथम निमंत्रण आपको पुरन हो सब काज,
हे लंबोदर, हे गजानन, बल,बुद्धि, विद्या के दाता,
शिव-पार्वती के प्राणों से प्रिय कष्ट निवारक त्राता।
रिद्धि-सिद्धि के स्वामी तुमको पुजे जग सारा,
प्रथम पुजन तेरी हो जो सब कार्य पुरन हो जाता।
गौरी ने अपने तन के मैल से तुम्हें बनाया,
पुछे शिव कौन हो तुम गौरी का पुत्र बताया।
क्रोध में शिव ने अपने त्रिशूल से शर जो धड़ से उतारा,
शोक से ब्याकूल हुई थी, गौरी बेबस से हुये महाकाल।
गौरी के मुख से महाकाल ने पुत्र जन्म की कथा जो जाना,
पश्चाताप की अग्नि में जलकर शिव ने त्रिशूल धरती पर दे मारा।
तुरंत हीं शिवभक्त जाकर हथिनी पुत्र का मस्तक ले आएं,
मंत्रोच्चारण से गौरी पुत्र के सर पर हाथि का मस्तक लगायें।
मिलकर सभी देवों ने दिया गणपति को आशिष,
प्रथम पुजन हो आपकी बुधवार का दिन हो विशेष।
मुषकराज हैं तुम्हारे वाहन, दुर्वा घास तुम्हें है अति प्यारा,
जो कोई भोग लगावे लड्डू का कृपा तेरी उन्हें मिल जाता।
एकदंत हो,दयावंत हो, कृपा करो हे करुणा निधान,
पान और गुड़हल तुम्हें अतिप्रिय संकटनाशन दयानिधान।
पुरे जग को दिया यह संदेश माता-पिता हैं परम पूज्य,
जग में दूजा अन्य ना कोई, ना कोई है इनसे विशेष।
माता-पिता की कर परिक्रमा दिया अपनी बुद्धि का पहचान,
बल से बड़ी बुद्धि होती है, दिया सारे जग को इसका ज्ञान।