गणतंत्र भारत
गणतंत्र भारत
जनवरी छब्बीस को भारत में, गणतंत्र दिवस आया है
जन-जन में खुशहाली का, फिर से मंजर छाया है।
लोकतंत्र में ताकतवर, कोई एक नहीं बन पाया है
गणतंत्र देश में लोगो नें, बहुमत से मुखिया पाया है।।
लोकतंत्र का सही रूप यह, होता है गणतंत्र
बिन इसके आजाद देश भी, होता है परतन्त्र।
बनता ना कोई तानाशाह, आती ना जान को आफत है
जनता ही नेता चुनती है, होती जनता में ताकत है।
हर हिंदुस्तानी ने मिलकर, जन गण मन यहाँ गाया है
जन-जन में खुशहाली का, फिर से मंजर छाया है।।
जनता की खातिर इस दिन लागू, किया गया संविधान
हर मुश्किल का हल निकला और, लिखित हुआ सब ज्ञान ।
शक्ति बंटवारे को लोकतंत्र में, मिला नया यह भेष
भाईचारे को बल मिला और, खत्म हुआ सब द्वेष।
प्यार और भाईचारे का, गीत आज यह गाया है
जन-जन में खुशहाली का, फिर से मंजर छाया है।।
अब अपने निर्णय लेने की, भारत की आई बारी
प्रभुसत्ता अपना कर, दुश्मन को चोट दी भारी।
मौलिक अधिकार से संपन्न करके, दिया समता का ज्ञान
सब धर्मों को बराबर करके, दिया मान-सम्मान।
मिलकर हाथ बटाएंगे, मौका आज ये आया है
जन-जन में खुशहाली का, फिर से मंजर छाया है।।
मौलिक कर्तव्यों से हमको, आर्दशवाद सिखलाया है
राष्ट्र प्रेम और नैतिकता का, सबको पाठ पढ़ाया है।
गर्व और जोश से फहराता है, अपना तिरंगा प्यारा
शक्ति प्रदर्शन राजपथ पर, होता है सदा हमारा।
धर्म-जात पर फूट पड़े ना, संदेश प्यार का लाया है
जन-जन में खुशहाली का, फिर से मंजर छाया है।।
निर्भीक सैनिक आज दिखाते, नया जोश, विश्वास
देते भरोसा जन-जन को, हम पर रखो तुम आस।
प्यार, प्रेम, सोहार्द नीति को, हल्के में आप ना आँकना
सर्जिकल स्ट्राइक देते हैं हम, भारत की ओर ना झाँकना।
देश विदेश में मेरे देश ने, यशगान सदा ही पाया है
जन-जन में खुशहाली का, फिर से मंजर छाया है।।
इंकलाब का नारा देकर, शीश है अपना कटाया
जान हथेली पर रख कर, गौरो को हमनें भगाया ।
जान गंवा कर दी बलिदानी, मस्तक भेंट चढ़ाया
भगत सिंह और आजाद ने, खून है अपना बहाया।
मेरा भारत सबसे महान, कवि अरविंद ने यह गाया है
जन-जन में खुशहाली का, फिर से मंजर छाया है।।