“गणतंत्र दिवस”
“गणतंत्र दिवस”
‘आजाद’ होकर भी, जब ‘गुलामी’ थी;
सन् पैंतीस की , वो विधान पुरानी थी;
निज देश की, सदा बहुत बदनामी थी;
हिन्दुस्तान को भी,पहचान बनानी थी।
टिकी नजर, एक विधान की आस में;
तब चली, हवा ‘बसंती’ सन् पचास में;
‘बाबू साहेब’ ने, तब एक सभा बुलाई;
‘बाबा साहेब’ से, ‘संविधान’ लिखवाई।
झूम उठे थे तब तो, हरेक ‘भारतवासी’
जब ‘भारत’ ने त्यागा , ‘विधान’ बासी;
फिर तो बन गया था,अपना ‘संविधान’
बढ़ गया पूरे जग में, ‘भारत’ का मान।
अब इसे , लागू करने की थी हड़बड़ी;
तब तय हुई , तिथि ‘छब्बीस जनवरी’
साल था वह , सन् ‘उन्नीस सौ पचास’
आज निज ‘कानून’ था,’देश’ के पास।
आज चली थी, अंग्रेजी कानून पे डंडा;
जन-गण ने फहराया था, आज तिरंगा;
फिर सबने , मिल खूब खुशियां मनाई;
यही तारीख, ‘गणतंत्र दिवस’ कहलाई।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
स्वरचित सह मौलिक
…..✍️ पंकज ‘कर्ण’
…………कटिहार।।