गठरी
अहसानों के
बोझ तले छोड़ गया
आज वो अपने
अहसास
ले गया मन में
कुछ सवाल
निर्मल भावनाओं के
लांघी थी कइयों ने
उसके मन की
सीमा रेखा
आज….
उसकी देह ने
चार कंधों पर
पार कर दी देहरी
मुड़कर नहीं देखा फिर
खत्म कर
अपना बोझ
कई मन पर
छोड़ गया
कुछ अनसुलझे
सवालो की एक
गठरी
डरते हैं सभी
उसे खोलने से
शायद उसमें बंद हो
सच का आईना
कौन खोले??
कौन सामना कर सके-
खुद का??
आईना तो सदा-
असली सूरत दिखाता।।
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)