गज़ल
गज़ल
बह्र 1222 1222 1222 1222
मुहब्बत की नहीं जाती सियाने सब बताते है
हमेशा रास्ते खुद निकट हो फिर से मिलाते है.
नहीं सोचा कभी जिसको यही हमसफर नाते है
हमेशा वादें रातों के सुबह में टूट जाते है.
जिसे हम चाहते हैं रोज बन चाहत निभाते हैं
भुले सा भेद रखते और सब ही भूल जाते हैं.
सदा से मगन बढियां मगर पैसे सोच घाटे हैं
लियाकत दौड़ नापें असल कोरा सा दिखाते हैं.
बताना अगर कुछ चाहे चुपी आलम दिखाते हैं
भरी बारिश हुई तो जख्म दिल में ही छुपाते हैं.
जमाना ही बदल रेखा अब कैसे रिश्ते नाते हैं
सगे माँ बाप को बच्चें सदा से ही रुलाते हैं.
रेखा मोहन पंजाब