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2 Apr 2021 · 1 min read

गज़ल

मेरे ख़ाब में जब से, …आने लगे हैं!
मेरे रात दिन …… मुस्कुराने लगे हैं!

मेरी गर्दिशों में,…….न थे आगे पीछे,
वही मुझको अपना ….बनाने लगे हैं!

कि जिनकी नजर में मैं था टूटा तारा,
मुझे चांद सूरज ………बताने लगे हैं!

जो सुनते नहीं थे …….मेरी दास्ताँ भी,
मुझे आके अपनी …….सुनाने लगे हैं!

तुम्हें पूजता हूँ ………मैं ‘प्रेमी’ तुम्हारा,
कि मंदिर में दिल के….सजाने लगे हैं!

……. ✍ ‘प्रेमी’

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