गज़ल
जिसको् देखे इक जमाना हो गया!
दिल उसी का फिर दिवाना हो गया!
वो मिले क्या नैन फिर से मिल गये,
आशिकी का इक बहाना हो गया!
एक अरसे से रहा गुम शुम ये दिल,
वो मिले तो मुस्कुराना ……हो गया!
सैकड़ो नजरों से् नजरें मिल चुकीं,
फिर से उनका ही निशाना हो गया!
गुननुनाऊंगा जिसे ….अब उम्र भर,
पास मेरे इक तराना ……..हो गया!
चाहिए क्या दिल को जीने के लिए,
रहगुज़र को ….आबोदाना हो गया!
प्रेम से बढ़ कर नहीं ‘प्रेमी’ ..है् कुछ,
उम्र भर को ….ये खजाना हो गया!
…… ✍ सत्य कुमार ‘प्रेमी’