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16 Mar 2021 · 1 min read

गज़ल

बुझे ना जो कभी वो तिश्नगी का!
जमाना था हमारी आशिकी का!

दिया जलता रहा चाहत का् यारो,
चलन सीखा ये् मैंने …बंदगी का!

मुझे पीछे से् खंजर मार कर के,
मिटाया भ्रम है् उसने दोस्ती का!

छुपा रक्खा था् उसने ……बेबसी में,
दिखाया फिर से् जलवा इक हॅंसी का!

मुझे लगता तु आई ……..आसमां से,
तेरा रूतबा नहीं लगता …..ज़मीं का!

मैं प्रेमी बनके् तुझको …….चाहता हूँ,
तु पहला प्यार है इस ….जिंदगी का!

…… ✍ सत्य कुमार ‘प्रेमी’

1 Like · 1 Comment · 318 Views
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