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15 Mar 2021 · 1 min read

गज़ल

आ गई है ऋतु बसंती यार फिर से!
कर रही है ये धरा सिंगार फिर से!

गुनगुनाते हैं भ्रमर कोयल भि बोले,
फूल कहते यार करले प्यार फिर से!

पाक हो या चीन हो मत कर भरोसा,
क्या पता कब तोड़ दे गद्दार फिर से!

इश्क़ मे धोखा मिला जो भूल जाओ,
प्यार का कर लो कहीं इजहार फ़िर से!

पट्टियाँ आंखों पे ……ताले हैं जुबां पर,
सच नहीं लिख पा रहे अखबार फिर से!

घर मे् चोरी हो गई ……सब बेखबर हैं,
शक के् घेरे में है् ….चौकीदार फिर से!

प्यार से भरता नहीं …..प्रेमी का् दिल,
बस यही कहता रहा इकबार फिर से!

….. ✍ सत्य कुमार ‘प्रेमी’

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