सारा शहर जल रहा है
122. 122. 122. 122
दिलों में ये कैसा जहर पल रहा है
भरोसा ये कैसा यहां छल रहा है
ये आईं कहां से है नफ़रत की आंधी
मुहब्बत का सुरज कहां ढल रहा है
है पत्थर पड़े अक्ल पर उनके देखो
था अपना मगर लूटता चल रहा है
जला इक शरर दिल में नफ़रत का जबसे
मकां दर ये सारा शहर जल रहा है
कहां है वो राखी वो मीठी सी माला
के नफ़रत की राहों पे दिल जल रहा है
जहां रोज होती मुहब्बत की बातें
वहीं आज रिश्ता ये क्यूं जल रहा है
थे हर शय से बढ़कर मुहब्बत के चर्चे
ये नफ़रत का कैसा ग्रहण चल रहा है
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गौतम जैन