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7 Apr 2018 · 1 min read

गज़ल

—- गज़ल—

ज़िन्दगी पे लदी उधारी है।
चंद साँसों की रेज़गारी है।।

दाँव हर खेल हार बैठे हम।
वक़्त निकला बड़ा जुआरी है।।

आदमी की जुबां ज़हर जैसी।
ज़ेब में हर छिपी कटारी है।।

दूसरों की ख़ुशी से जलते सब।
नफ़रतों की यहाँ बिमारी है।।

भूख कब से झगड़ रही हम से।
रोटियों की तलाश ज़ारी है।।

चंद लम्हें हसीं ज़रा जी ले।
मौत की ज़िन्दगी से यारी है।

जान दी सर कटे जवानों के।
सरहदें मुल्क़ की सँवारी है।।

ज़िद हमारी ये देख ले दुनिया।
नाव तूफ़ान में उतारी है।।

चाँद ये हँस रहा फ़लक पे जो।
लग रहा यार की सवारी है।।

नाचते हैं सभी नचाये वो।
इस जहां का ख़ुदा मदारी है।।

फूल सब बेवफ़ा लगे मुझको।
शक़्ल यह संग ने निखारी है।।

चल पड़ा किस रस्ते पे तू नादां।
पाप का बोझ तेरा भारी है।।

——-विनोद शर्मा”सागर”

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