गज़ल
—- गज़ल——
मुझे जख़्म दे पर दवाई न दे।
भरोसा हमें तू हवाई न दे।।
नज़र से कहा कुछ जुबां से कहा।
खता हो गयी अब सफ़ाई न दे।।
सुबह शाम नख़रे उठाने पड़ें।
ख़ुदा तू मुझे फ़िर लुगाई न दे।।
जला कर जहां प्यार का तू मेरे।
मुझे ज़िन्दगी की बधाई न दे।।
सिसकता रहा याद में मैं तेरी।
तड़प क्यूँ तुझे ये सुनाई न दे।।
मिट ना सकूँ किसी भूख को।
मुझे प्रभु ऐसी कमाई न दे।।
अमन चैन हो हर जगह ऐ ख़ुदा।
दिलों में किसी के बुराई न दे।।
मिले हर किसी को खुशी का गगन।
ज़मीं के लिये फ़िर लड़ाई न दे।।
कलम के सिपाही न बहकें यहाँ।
ख़ुदा झूठ की रौशनाई न दे।।
बुलंदी न ऐसी उँचाई नदे।
जहाँ से ख़ुदा तू दिखाई न दे।।
——– विनोद शर्मा “सागर”