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2 Apr 2018 · 1 min read

गज़ल

—- गज़ल——

मुझे जख़्म दे पर दवाई न दे।
भरोसा हमें तू हवाई न दे।।

नज़र से कहा कुछ जुबां से कहा।
खता हो गयी अब सफ़ाई न दे।।

सुबह शाम नख़रे उठाने पड़ें।
ख़ुदा तू मुझे फ़िर लुगाई न दे।।

जला कर जहां प्यार का तू मेरे।
मुझे ज़िन्दगी की बधाई न दे।।

सिसकता रहा याद में मैं तेरी।
तड़प क्यूँ तुझे ये सुनाई न दे।।

मिट ना सकूँ किसी भूख को।
मुझे प्रभु ऐसी कमाई न दे।।

अमन चैन हो हर जगह ऐ ख़ुदा।
दिलों में किसी के बुराई न दे।।

मिले हर किसी को खुशी का गगन।
ज़मीं के लिये फ़िर लड़ाई न दे।।

कलम के सिपाही न बहकें यहाँ।
ख़ुदा झूठ की रौशनाई न दे।।

बुलंदी न ऐसी उँचाई नदे।
जहाँ से ख़ुदा तू दिखाई न दे।।

——– विनोद शर्मा “सागर”

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