गज़ल
२१२२–१२१२–२२
आ रहा है कोई
पास दिल के भी आ रहा है कोई
ख्वाब मेरे सजा रहा है कोई
ज़िंदगी फिर से जी गये हम तो
प्यार हमसे जता रहा है कोई
महफ़िलो की कभी जो रौनक थी
फ़ब्तियों से मिटा रहा है कोई
छुप रहा है गुनाह अंधेरो में
आइनो को छुपा रहा है कोई
आग कैसी लगी है वीरां में
यादे किसकी मिटा रहा है कोई
अश्क आखिरश सूखने ही थे
चश्म ऐ दिल चुरा रहा है कोई