गज़ल
तेरी रुसवाई का अंधेरा लिए, दिल मेरा
दिया सा रात भर जलता रहा है।
देख कर नापाक हरकत सरहदों पर
दिल दरिया आग बन चढ़ता रहा है।
नाज़-ए-वतन हैं,मेरी हिंद सैना
सीना ठोक, हर वीर आगे बढ़ता रहा है।
न जाने क्यों, मेरे देश की तरक्की से
चीन पाकिस्तान यूं ही बस जलता रहा है।
शांति-सब्र,मेहनत और परिश्रम का
फल सदा सबको सुनों मिलता रहा है।
कभी पतझड़ कभी सावन तो कभी बसंत में
सदा ही पुष्प उपवन में नव खिलता रहा है।
बस यूं ही नहीं है मीत मेरा, दुनिया वालों
खुद ही ज़ख्म देकर, फिर सिलता रहा है।
सूरज कब न ढला,तू ही अब बता’नीलम’
नित ढलकर सलौनी शाम से मिलता रहा है।
नीलम शर्मा