गज़ल
मिसरा-हम उसे देवता बना देगे।
काफ़िया-मर्तबा,देवता,माज़रा
रदीफ-बना देंगे।
हम उसे देवता बना देंगे . . .. . . . .. .।
हैं हम समंदर इश्क का,ना रोक राह ओ ज़माने
प्यार की लहरों से हम उसके दिल में बसने की खुद राह बना लेंगे।
सुना है पत्थर का कलेजा है उस नाज़नीन का
ग़र वो है पत्थर तो हम देवता बना देंगे
प्यार की लहरों से हम दिल में जगहा बना लेंगे, ग़र वो है पत्थर तो हम देवता बना देंगे।
करदे चाहे लाख टुकड़े वो मेरे दिल के . . . . .
पर हम कभी ना उस दर्द को दग़ा देंगे,सहेंगे दर्द इश्क का और तड़पेंगे
दुआएँ माँगके उसे देवता बना देंगे, प्यार की लहरों से हम दिल में जगहा बना लेंगे,
ग़र वो है पत्थर तो हम देवता बना देंगे।
हाँ एक मर्तबा हो जाए जो नज़रों का करम,समझ वो लेगा के मोहब्बत है सीमा-ए-चरम
दिखाकर उसको कलेजा ये, चीरकर अपना,है चाहतों का माज़रा हम समझा देंगे
प्यार की लहरों से हम दिल में जगहा बना लेंगे, ग़र वो है पत्थर तो हम देवता बना देंगे।
चले जो यूँही सिलसिला मनाने रूठने का,हम लाकर माँग में चाँद-तारे हाँ सजा देंगे
वो हुस्न गुस्से में खुद आफताब लगता है,हम देकर अर्ग उसे देवता बना देंगे
प्यार की लहरों से हम दिल में जगहा बना लेंगे, ग़र वो है पत्थर तो हम देवता बना देंगे।
नीलम शर्मा