गज़ल
मिसरा- जब बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूं करें हम।
काफ़िया-आ
रद़ीफ़-क्यूं करें हम।
सीधा सादा है महबूब मेरा,
उससे शिकवा भला क्यूं करें हम।
जब वो रहता है मेरे जिगर में
फिर छिपके ताका क्यूं करें हम।
बातें जिनसे हमें लेना न देना
चर्चा उनकी भला क्यूं करें हम।
जब सनम की नशीली हैं आंखें
पीकर मय ही बहका क्यूं करें हम।
जब मैं वाकिफ हूं पर्दा नशीं से
फिर उसी से पर्दा क्यूं करें हम।
ज़ीस्त तुमने सजाई है नीलम
दिल तेरा दुखाया क्यूं करें हम।
नीलम शर्मा