गज़ल
२५/५/१८
मिसरा- हमसे ऊंची उड़ान किसकी है।
क़ाफ़िया- किसकी ( ई)
गिरह- आ करें खुले मैदान में एक मुकाबला,
हम भी देखें ,हमसे ऊंची उड़ान किसकी है।
१)
ये इज़हार-ए-मुहब्बत जो हुई है,
हमको भाने लगी जिंदगी है।
२)
अब तो तू ही बस मेरी बंदगी है।
अब तो तू ही बस मेरी जिंदगी है।
३)
जब से जाना कि क्या आशिकी है,
दिल की धड़कन बन गयी मोशिकी हैं।
४)
तुमने जो इनायत हमपे की है,
तुमसे कुरबतें मेरी बढ़ गई है।
५)
आंखें तेरी ही नशीली हैं हम-दम,
या फिर हमने ही,मय पीली है।
६)
बाद अरसे के कैसे तुमको नीलम
राह मंजिल की तेरी मिल गई है।
नीलम शर्मा