गज़ल सी रचना
गम को भी सीने से ऐसे से लगाया है,
जैसे मुस्कान को लबों पर सजाया है।
नन्हें नाजुक परों की तान कर चादर,
पंछी ने तूफां में अपना नीड़ बचाया है।
यूँ तो गुलशन में हैं फूल तरह-तरह के,
जाने क्यों हमें गुलाब ही बहुत भाया है।
चाहे आस-पास हों परिचित से चेहरे
जो बाँटे न दर्द हर वो चेहरा पराया है।
“कंचन” यही खासियत रही है तुझमें,
आग में तपकर हर बार निखर आया है।
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत) ।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)।
दिनांक :- ०८.०१.२०१७.