गज़ब की शीत लहरी है सहन अब की नहीं जाती
गज़ब की शीत लहरी है सहन अब की नहीं जाती
डरी है धूप कोहरे से नज़र हमको नहीं आती
बहुत बेचैन दिखते हैं ठिठुरते जीव ये सारे,
कहीं मिल जाये कुछ गर्मी दुबकते फिर रहे मारे
अरे ये हाड़ कंपाती हुई सर्दी नहीं भाती
गज़ब की शीत लहरी है सहन अब की नहीं जाती
है पानी बर्फ सा ठंडा निकल ही जान जाती है
टपकती ओस ऊपर से गलन कितनी बढ़ाती है
बजाते दाँत भी ढपली सुड़कती नाक है गाती
गज़ब की शीत लहरी है सहन अब की नहीं जाती
जरूरत देख कर अपनी हुई है धूप नखरीली
निकलती भी कभी है तो ये लगती है हमें सीली
पहन लो कोट मफलर टोप ये फिर भी कहर ढाती
गज़ब की शीत लहरी है सहन अब की नहीं जाती
समय कटता है अब अपना जलाकर रात दिन हीटर
रजाई में कड़क अदरक की या फिर चाय पी पीकर
न भेजी है दिवाकर ने कई दिन से कोई पाती
गज़ब की शीत लहरी है सहन अब की नहीं जाती
06-01-2023
डॉ अर्चना गुप्ता